Reforms In Agriculture Sector: पीएम आर्थिक सलाहकार काउंसिल के अध्यक्ष बोले, 1991 से कृषि क्षेत्र में सुधार लंबित, किसानी हो सरकारी नियंत्रण से मुक्त

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Agriculture Reforms: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार काउंसिल (पीएमईएसी) के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने कहा कि भारत में कृषि क्षेत्र में अभी तक नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र सुधार 1991 से ही लंबित चल रहे हैं जबकि पड़ोसी देश चीन ने उन्हें 1978 में ही लागू कर दिया था. उन्होंने कहा कि 1991 में भारत ने आर्थिक सुधार का जो फैसला लिया था उसकी वजहें बाहरी थी और उदारीकरण का फैसला औद्योगिक उदारीकरण से संबंधित था और इनका कृषि से कोई संबंध नहीं था.

कृषि क्षेत्र में सुधार है बाकी

बिबेक देबरॉय ने कहा कि मौजूदा समय में कृषि व्यवहारिक नहीं रह गई है और यहां तक कि देश की जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी भी सालाना एक फीसदी घट रही है. इसके बावजूद देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अपनी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है. उन्होंने कहा कि, भारत में हम अक्सर चीन से तुलना करते हैं. चीन ने 1978-79 में ही कृषि में सुधार कर दिया था. भारत में 1991 में सुधार लागू किए गए थे लेकिन ये सुधार बाहरी क्षेत्र और औद्योगिक उदारीकरण से संबंधित थे। क्या कृषि में सुधार किए गए हैं? क्या कृषि लाइसेंसिंग मुक्त है? इसका जवाब है नहीं.

कृषि क्षेत्र पर सरकार का नियंत्रण

उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र के लागत-उत्पादन, विपणन और वितरण पक्ष को सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है. उन्होंने कहा, कृषि के लिए सुधार एजेंडा न केवल 1991 से लंबित है, बल्कि अब भी यह लटका हुआ है.
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी, बीज, विपणन माध्यम, निवेश और वितरण, इनमें से प्रत्येक में आपको नियंत्रण देखने को मिलेगा. ये नियंत्रण दूर नहीं हुए हैं.. मूलतः प्रतिरोध की एक राजनीतिक अर्थव्यवस्था है.देबरॉय ने कहा कि प्रतिरोध की यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था इस मानसिकता से आती है कि भारतीय किसान अपने लिए अच्छे या बुरे के बारे में नहीं जानते हैं लिहाजा उन्हें संरक्षण देना चाहिए.

किसानों को अनुचित हस्तक्षेप से बचाने की जरूरत

उन्होंने इस धारणा से असहमति जताते हुए कहा,मुझे नहीं लगता कि किसानों को इस अर्थ में संरक्षित करने की जरूरत है. हां, खेती व्यवहार्य नहीं रह गई है, क्योंकि लागत मूल्य अन्य कीमतों से अधिक हैं. बीमा को लेकर कुछ समस्याए हैं. हमारे पास अभी भी संतोषजनक बीमा नहीं है. लेकिन भारतीय किसानों को संरक्षण की जरूरत नहीं है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारतीय किसानों को राज्य के अनुचित हस्तक्षेप से बचाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि किसानों को इस नियंत्रण से मुक्त करते ही भारतीय कृषि का कायाकल्प किया जा सकता है.